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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?

उत्तर

श्वासोच्छ्वास
(Breathing)

एक निश्चित दर से बाहरी हवा को फेफड़ों में बार-बार भरना और निकालना इसी को श्वासोच्छ्वास या फेफड़ों का वायु संचालन या संवातन ( ventilation of lungs) कहते हैं। यह एक यांत्रिक क्रिया (mechanical process) होती है। हवा को फेफड़ों में भरना, अन्तःश्वास (inspiration) और निकालना निःश्वास या उच्छ्वास (expiration) कहलाता है। अन्तःश्वास में फेफड़े फूलते हैं जिससे इनमें वायु का दबाव बाहरी हवा के दबाव से कुछ कम हो जाता है और बाहरी वायु इनमें खिंच आती हैं। निःश्वास में फूले हुए फेफड़े पिचककर वापस सामान्य दशा में आते हैं जिससे इनमें वायु का दबाव बाहरी वायु के दबाव से कुछ बढ़ जाता है और इनमें भरी कुछ वायु बाहर निकल जाती है। इस प्रकार फेफड़े चूषण - पम्पों या धौंकनी की भाँति काम करते हैं।

वक्षीय कटहरा (Thoracic Cage) शरीर का वक्षीय भाग एक बन्द कटघरे की तरह होता है जिसमें कि बड़े-बड़े फेफड़े, ग्रासनी और हृदय बन्द रहते हैं। यह पृष्ठ तल की ओर कशेरुकदण्ड, अघतन्त्र की ओर स्टर्नम, पार्श्वों में पसलियों, आगे की ओर ग्रीवा तथा पीछे की ओर डायफ्राम द्वारा घिरा होता है। इसकी देहभित्ति लचीली होती है। फेफड़े भी अत्यधिक लचीले और स्पंजी होते हैं। देहभित्ति की भीतरी सतह पर महीन, झिल्लीनुमा पैराएटल प्ल्यूरा का आवरण होता है। ये दोनों झिल्लियाँ एक चिपचिपे तरल की महीन पर्त द्वारा परस्पर चिपकी रहती है तथा एक-दूसरे पर कुछ खिसक सकती हैं, लेकिन आसानी से बिल्कुल अलग नहीं हो सकतीं। डायफ्राम से भी फेफड़ों की पिछली सतह इसी तरह से चिपकी रहती है। झिल्लियों के बीच के स्थान को, जिसमें कि चिपचिपा तरल होता है, सम्भाव्य अन्तराल (potential space) कहते हैं। इसमें कहीं थोड़ा-सा भी जल संचित हो जाये तो साँस लेना कठिन हो जाता है। इस रोग को फुफ्फुसावर -शोथ (Pleurisy) कहते हैं।

फेफड़ों में बारम्बार हवा से भरकर फूलना तथा फिर पिचककर वापस अपनी मूल दशा में आना वक्षगुहा के आयतन के बढ़ने और घटने पर निर्भर करता है। वक्ष गुहा के आयतन को बढ़ाने घटाने में दो विभिन्न प्रकार की गतियाँ काम करती हैं जिन्हें श्वास गतियाँ कहते हैं। एक प्रकार की श्वास गतियों में डायाफ्राम आगे-पीछे की ओर फूलता - पिचकता है तथा दूसरे प्रकार की गतियों में पसलियाँ उठती और दबती हैं।

घबराहट, थकावट या व्यायाम के समय हम जानबूझकर गहरी श्वास ले सकते हैं। अतः गहरी श्वास ऐच्छिक (voluntary) होती है। अन्तःश्वास के समय डायाफ्राम का संकुचन चार-पाँच गुना अधिक होता है और बाह्य अन्तरापर्शक पेशियों का संकुचन तुलना में 15 से 20 प्रतिशत अधिक होता है। इससे स्पष्ट है कि गहरी अन्तः श्वास में सामान्य अन्तःश्वास की अपेक्षा काफी अधिक वायु फेफड़ों में भरती है और वक्षीय गति उदारीय गति से अधिक स्पष्ट होती है। ऐसी श्वास को इसीलिए वक्षीय श्वासोच्छ्वास कहते हैं।

श्वासोच्छ्वास में वायु की मात्रायें (Air volumes in Breathing) - श्वासोच्छ्वास में फेफड़े न तो कभी पूरे वायु से भरे जा सकते हैं और न ही पूरे खाली किये जा सकते हैं। इनमें भरने और निकलने वाली वायु की मात्रा को नापना श्वासमापन (spirometry) कहलाता है। इसे श्वासमापी यंत्र (spirometer) द्वारा मापित किया जाता है। सामान्यतः फेफड़ों से सम्बन्धित वायु की चार प्रकार की मात्रायें महत्वपूर्ण मानी जाती है। इन्हें फुफ्फुसीय मात्रायें या श्वास वायु आयतन कहते हैं। ये निम्नलिखित होती हैं-

(i) प्रवाही वायु (Tidal Air Volume) - यह वायु की वह मात्रा होती है जो प्रत्येक सामान्य शान्तश्वास में फेफड़ों में भरती और निकलती है। एक सामान्य युवा मनुष्य में यह 500 मिलीलीटर होती है।

(ii) अन्तःश्वास आरक्षित वायु (Inspiratoion Reserve Air Volume) प्रवाही वायु से अधिक जितनी वायु हम चेष्टा और आभास से एक बार की साँस से ग्रहण कर सकते हैं उसे अन्तः श्वास आरक्षित वायु कहते हैं। युवा मनुष्य में यह लगभग 3000 मिलिलीटर होती है।

(iii) निःश्वास आरक्षित वायु (Expiration Reserve Air Volume) - यह प्रवाही वायु को छोड़कर चेष्टा द्वारा निकाल देने के बाद भी फेफड़ों में बची रह जाती है। सामान्य युवा मनुष्य में यह लगभग 200 मिलीलीटर होती है।

(iv) अवशेष वायु (Residual Air Volume) यह वायु की वह मात्रा होती है जो अधिकतम चेष्टा द्वारा निकाल देने के बाद भी फेफड़ों से बची रह जाती है। सामान्य युवा मनुष्य में यह लगभग 1200 मिलीलीटर होती है।

श्वासोच्छवास में फेफड़ों की सामर्थ्य (Lung Capacities in Breathing) श्वासोच्छ्वास में दो या दो से अधिक वायु मात्राओं के योग को फेफड़ों की सामर्थ्य कहते हैं। चार प्रकार की सामर्थ्य महत्वपूर्ण होती है -

(i) अन्तःश्वास सामर्थ्य ( Inspiratory Capacitiy) - प्रवाही वायु तथा अन्तः श्वास आरक्षित वायु के योग को फेफड़ों की अन्तःश्वास सामर्थ्य कहते हैं। इस तरह यह वायु की कुल मात्रा है जिसे हम अधिकतम् चेष्टा द्वारा फेफड़ों में भर सकते हैं। स्पष्ट है कि युवा मनुष्य में यह लगभग 3500 (500 + 3000) मिलीलीटर होती है।

(ii) कार्यात्मक अवशेष, (Functional residual capacity) आरक्षित वायु तथा अवशेष वायु के योग के बराबर अर्थात् लगभग 2300 ( 1100 + 1200) मिलीलीटर होती है। यह वायु की वह मात्रा है जो सामान्य उच्छ्वास के बाद फेफड़ों में रह जाती है।

(iii) सजीव सामर्थ्य (Vital capacity) - यह अन्तःश्वास आरक्षित वायु प्रवाही वायु तथा उच्छवास आरक्षित वायु का योग ( 3500 + 500 + 1100 = 4600 मिलीलीटर। फेफड़ों में सजीव सामर्थ्य होती है। यह वायु की वह कुल मात्रा होती है जिसे हम पहले पूरी चेष्टा द्वारा फेफड़ों में भरकर पूरी चेष्टा द्वारा ही फेफड़ों में वापस निकाल सकते है।

(iv) कुल सामर्थ्य (Total lung capacity) - यह सजीव सामर्थ्य तथा अवशेष वायु का योग (46000+12000 = 58000 मिलिलीटर) होता है, अर्थात् वायु की वह कुल मात्रा जो फेफड़ों में समा सकती है।

मनुष्यों में शरीर के माप और स्वास्थ्य के अनुसार, श्वासोच्छ्वास में वायु की मात्राओं तथा फेफड़ों की विभिन्न सामार्थ्यो में काफी अन्तर होता है। सामान्यतः ये कमजोर मनुष्यों में कम और बलिष्ठ मनुष्यों में ये आराम के समय कम तथा काम के समय अधिक होती है।

साँस की हवा में परिवर्तन- निस्पंदन एवं वातानुकूलन - नसिका में होकर ग्रसनी और फिर कण्ठद्वार तक पहुँचते-पहुँचते, अन्तः श्वासित वायु (i) का ताप लगभग शरीर-ताप के बराबर हो जाता है, (ii) यह चाहे जितनी शुष्क हो, जल वाष्प से संतृप्त (saturated) हो जाती है, (iii) यह छन जाती है अर्थात् इसमें उपस्थित धूल इत्यादि के कारण नासिका के बालों में अटककर तथा श्लेष्म (muscus) में चिपककर रह जाते हैं। इस प्रकार, नासिका के वायु का निस्पंदन ( filtration) एवं वातानुकूलन (air conditioning) हो जाता है। इसीलिए उच्छ्वासित वायु गरम व नम होती है। अपने शरीर का औसतन आधा लीटर जल हम दिन भर में साँस की हवा के द्वारा ही खो देते हैं। स्पष्ट है कि श्वास- क्रिया की शरीर ★ के जल और ताप नियंत्रण में भी कुछ भूमिका होती है।

श्वास- क्रिया या वायु- संचालन का नियमन (Regulation of Breathing) स्वासोच्छवास या वायु-संचालन एक अनैच्छिक (involuntary) क्रिया के रूप में एक निश्चित दर ( वयस्क मनुष्य में 12 से 15 शिशुओं में लगभग 44 बार प्रति मिनट) से अपने-आप निरन्तर होता रहता ★ है। मनुष्य की हर सामान्य साँस में लगभग दो सेकण्ड की अन्तःश्वास और तीन सेकण्ड की उच्छ्वास होती है।

श्वासोच्छ्वास पूर्णरूपेण तंत्रिकीय नियंत्रण में होता है। मस्तिष्क की मेड्यूला एवं पोन्स वैरोलाइ में स्थिति एक द्विपार्श्वी श्वास केन्द्र श्वासोच्छवास की सामान्य लय एवं दर का नियंत्रण करने के अतिरिक्त, व्यायाम संकटावस्थाओं (भय, पीड़ा, क्रोध, विपत्ति, चिन्ता, ज्वर इत्यादि), योग क्रिया, बोलने, गाने, मुख से संगीत वाद्य बजाने इत्यादि में भी श्वास दर तथा साँस की तीव्रता को शरीर की आवश्यकतानुसार बढ़ाता-घटाता है। श्वास केन्द्र के ऐसे नियंत्रण के कारण ही हम अपनी साँस को अधिक देर तक रोक नहीं सकते, केवल थोड़े समय के लिए इच्छानुसार गहरी या तीव्र साँस ले सकते हैं। ऐसी एच्छिक श्वास के लिए श्वास केन्द्र प्रमस्तिष्क के नियंत्रण में कार्य करता है। श्वासकेन्द्र मात्राएँ स्थायी सन्तुलित सीमा में बनी रहती हैं।

असाधारण दशाओं में श्वास दर तथा श्वास की तीव्रता को बढ़ाने घटाने का नियंत्रण न्यूमोटैक्सिक केन्द्र तथा श्वास केन्द्र करते हैं। न्यूमोटैक्सिक केन्द्र से प्रेरणा प्रसारण तीव्र हो जाता है तो अन्तःश्वास का समय घट जाने के कारण श्वास दर बढ़ जाती है। इसी प्रकार न्यूमोटैक्सिक केन्द्र से प्रेरणा हल्की हो जाती है तो अन्तःश्वास का समय बढने से श्वास दर धीमी हो जाती है।

1. श्वसनमार्ग में वायु प्रविष्ट होना श्वास लेते समय शुद्ध वायु नासिका ग्रसनी स्वरयंत्र, श्वास नलिका और श्वास वाहिनियों और वायु वाहिनियों में से होते हुए वायुकोषों में पहुँच जाती है। वायु कोषों को फूलने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता होती है और उन्हें फैलने के लिए फेफड़े भी स्थापकत्व गुण के कारण फैल जाते हैं।

2. स्नायुओं का सहयोग फेफड़ों को फैलने के लिए श्वास पटल एवं पसलियों के बीच के स्नायु सहयोग देते हैं, जिससे वक्षस्थल के पिंजरे का घेरा ऊपर-नीचे आगे-पीछे और दायें-बायें बढ़ जाता है।

3. वायु का व्यतिकरण शुद्ध वायु से परिपूर्ण वायुकोष के आस-पास फुफ्फुस धमनी के केशिकावाहिनियों का जाल छाया रहता है, जिनमें अशुद्ध रक्त बहता रहता है। वायुकोश और केशिकावाहिनी की दीवार इतनी पतली होती है कि इनमें परस्पर वायु का आदान-प्रदान आसानी से हो जाता है। अर्थात् वायुकोष की प्राणपद वायु रक्त के हीमोग्लाबिन द्वारा खींची जाती है और वह

केशिकावाहिनियों में पहुँचकर रक्त को शुद्ध कर देती हैं तथा केशिकाहिनियों का दूषित पदार्थ (कार्बन- डाइऑक्साइड) पतली दीवार में से वायुकोष में पहुँच जाता है।

4. श्वास पटल का उच्छवास में सहयोग कार्बन डाइआक्साइड वायुकोषों में पहुँचने पर उसके निष्कासन हेतु श्वासपटल प्रसारित होकर पुनः अपनी अर्द्धगोलाकार स्थिति में आ जाती है। इस समय पसली के स्नायु भी संकुचित होते हैं। इससे वक्षस्थल के पिंजरे का घेरा कम हो जाता है, जिसका दबाव फेफड़ों पर पड़ता है और फेफड़े संकुचित होकर वायुकोषों पर दबाव डालते हैं, परिणामस्वरूप श्वसन मार्ग से अशुद्ध वायु शरीर द्वारा बाहर जाती है।

साधारण मनुष्य में एक मिनट में श्वासोच्छ्वास की क्रिया सोलह से बीस बार सम्पन्न होती है। जब हम खाँसते हैं या छींकते हैं तथा दीर्घ उच्छ्वास करते हैं अथवा जोर से बोलते या गाते समय हमारे (स्नायुओं को विशेष कार्य करना पड़ता है। ऐसे समय छाती की पसलियों के भीतर की ओर रहने वाली स्नायु आंकुचित होने से पसलियाँ कुछ भीतर की ओर खिंच जाती हैं जिससे छाती का खोखला भाग आगे- पीछे की ओर कुछ सिकुड़ता है। इससे फेफड़ों पर अधिक दबाव पड़ने से वे अधिक हवा जोर से बाहर की ओर फेंकते हैं और खाँसने इत्यादि की आवश्यक क्रिया होती है।

साँस के द्वारा ली गई और साँस के साथ बाहर छोड़ी गई हवा में अन्तर

वायु के घटक साँस के साथ भीतर ली गई वायु (100 भाग) साँस के साथ बाहर छोड़ी गई वायु (100 भाग)
नाइट्रोजन 79.0 79.00
ऑक्सीजन 20.96
16.5
कार्बन-डाइऑक्साइड 0.04 4.5
पानी की भाप अनिश्चित अधिक से अधिक 
अन्य दूषित वायु बिल्कुल नहीं रहती है

रक्त का शुद्धिकरण - जब कभी दो वायु जैसे कार्बन-डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन एक-दूसरे के नजदीक आ जायें या उनके बीच में एक झीना पर्दा ही रहे तो थोड़ी ही देर में ये वायु एक-दूसरे से मिल जायेंगी। इस प्रकार की मिश्रण क्रिया को व्यतिकरण कहते हैं। शुद्ध वायु अर्थात् ऑक्सीजनयुक्त वायु श्वास मार्ग से फेफड़ों के भीतर जाती है तब प्रत्येक वायु में वायु के साथ ऑक्सीजन भर जाती है। यहाँ पर केशिकावाहिनियों का जाल होता है जिनमें अशुद्ध रक्त रहता है। वायुकोष और केशिकावाहिनियों की कार्बन-डाइऑक्साइड में व्यतिकरण होकर उनमें आसानी से आदान-प्रदान हो जाता है अर्थात् वायुकोष की ऑक्सीजन केशिकावाहनियों में जाती है और केशिकावाहिनियों की कार्बन-डाइऑक्साइड वायुकोषों में आ जाती है। लाल रक्त कण में हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ रहता है जिनमें ऑक्सीजन को खींचने की शक्ति रहती हैं। वायुकोषों की ऑक्सीजन रक्त में जैसे ही पहुँचती है वैसे ही उसका हीमोग्लोबिन से सम्पर्क होने के कारण उससे ऑक्सीहीमोग्लोबिन नामक लाल पदार्थ तैयार होता है तथा कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी इत्यादि रक्त के अशुद्ध पदार्थ वायुकोषों में जाकर वहाँ उच्छ्वास के साथ शरीर के बाहर निकल जाते हैं, जिससे रक्त का रंग बदलता है और वह लाल रंग का हो

इस तरह से वायु की ऑक्सीजन रक्त में, ग्रहण की जाती है और रक्त में मिले कार्बन- डाइऑक्साइड, पानी इत्यादि अशुद्ध पदार्थ शरीर के बाहर बाहर निष्कासित कर दिए जाते हैं। इस पूरी क्रिया को रक्त का शुद्धिकरण कहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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